----- स्थापना -----
महाराजाधिराज लक्ष्मेश्वर सिंह की भार्या महारानी लक्ष्मीवती के नाम से ०८/०३/१९१४ को लक्ष्मीवती पाठशाला सरिसबपाही के रूप में स्थापित की गई | उस समय तत्कालीन परीक्षा प्रणाली के अनुसार प्रथमा से आचार्य कक्षा पर्यंत क्षात्रों को व्याकरण , साहित्य , ज्योतिष , धर्मशाश्त्र , न्यायशाश्त्र आदि संस्कृत के मूल विषयों का पारंपरिक रीति से अध्यापन किया जाता रहा | कालांतर में इस महाविद्दालय में अध्ययन लाभ करने वाले क्षात्रों में कतिपय विद्वान संस्कृत जगत में अत्यंत विश्रुत रहे जिनमे पं० मणिनाथ झा , पं० माधव झा , प्रो० किशोर नाथ झा , प्रो० कृष्णानंद झा आदि | इनके नाम किसी अलग परिचय के मुहताज नहीं है | .
इस संस्था को टोल विद्दालय के रूप में बिहार संस्कृत शिक्षा समिति द्वारा परीक्षा संचालित की जाती थी | विश्वविद्दालय की स्थापना के उपरांत यह विद्दालय कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्व विद्दालय के अंतर्गत संचालित होने लगा | जिसे राज्य सरकार के . "ज्ञापांक २०४ - दिनांक ०२/०३/१९८१ " द्वारा वर्गीकरण करते हुए संस्कृत महाविद्दालय ( उपशाश्त्री स्तर ) के रूप में निर्धारण किया गया | फलस्वरूप लक्ष्मीवती संस्कृत उपशाश्त्री महाविद्दालय सरिसबपाही के रूप में संचालित होने लगा | .
----- भूमि -----
१९/०६/१९२५ में महारानी लक्ष्मीवती ऑफ़ दरभंगा ट्रस्ट फण्ड की स्थापना सरकार द्वारा की गई जो शिक्षा विभाग बिहार एवं उड़ीसा राज्य द्वारा बजट में अधिसूचित है जिसमे 14 बीघा 14 कट्ठा भूमि है | उक्त भूमि में ट्रस्ट डीड के अनुसार दो संस्था संचालित है :- १) लक्ष्मीश्वर एकेडमी २) लक्ष्मीवती संस्कृत पाठशाला जो उपशाश्त्री महाविद्दालय के नाम से निबंधित है जिसे महाविद्दालय के नाम से हस्तान्तरण हेतु संस्था प्रयासरत है |
देखें : "ट्रस्ट डीड की छायाप्रति "
----- भवन -----
ट्रस्ट की परिसंपति के एक प्लाट के पश्चिमोत्तर भाग के एक सिरे पर महाविद्दालय का ६ प्रकोष्ठों का पक्का भवन है | इसके अतिरक्त २ छात्रावास भवन भी उपलब्ध है | महाविद्दालय भवन में सौचालय एवं चापाकल के साथ साथ भवन के सामने ५ बीघा खेल मैदान भी है |