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|| निवेदन ||

बालोSहं जगदानन्द न मे वाला सरस्वती |

अपूर्णे पञ्चमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ||

बालक शंकर का यह गर्वोक्ति जहाँ से प्रस्फुटित होकर सर्वत्र सुरम्यमयी सुरभि विखेरती हो| जिस मन्त्र प्रसाद प्राप्त कर मिथिलावासी स्वयं को धन्य समझता हो| जहाँ पर स्वावलम्बीसारस्वत शैव सन्त अयाची मिश्र का प्रादुर्भाव हुआ| जहाँ की स्थली अमूल्य ज्ञानरत्नों की उद्भाविका रही है| मिथिलांचल के वह गौरवमयी ग्राम-सरिसब पाही,दारभंगा जिला से 29 किमी. पूर्व रास्ट्रीय राजमार्ग 57 पर सुशोभित है|

लक्ष्मीवती संस्कृत उपशास्त्री महाविघालय सरिसबपाहीग्राम के ह्रदय स्थली रहा है| गौरवमयीग्राम के महिमा मंडित यह संस्था बिहार के प्राचीन संस्कृत पाठशालाओं में मूर्धन्य रहा है | शास्त्र चिन्तन कर्मो के लिए यह एक ख्याति प्राप्त संस्था है| प्रारम्भ में यहाँ पर प्रथमा से आचार्य तक कि शिक्षा प्रदान की जाती थी | शिष्योपशिस्यैरूद्गीयमानवत व्याकरण,दर्शन तथा साहित्यादि शास्त्रों का चितंन,मनन और संस्करण होता था | पंo मार्कण्डेय मिश्र, पंo दीनबन्धु झा, पंo मधुसूदन मिश्र, पंo बद्रीनाथ झा, सर गंगानाथ झा आदि प्रकाण्ड पण्डितों का यह कर्मस्थली रहा है |


कालान्तर पश्चात् संस्कृत टोलविघालयों को राज्य सरकार द्वारा की गई वर्गीकरण व्यवस्था अन्तर्गत इस महाविघालय का दुर्भाग्यवश स्तरावनयन कर उपशास्त्री स्तर तक ही स्थायी संबंधन की स्वीकृति प्रदान की गई | इस अवनयन से इनका चला आ रहा शैक्षणिक कार्यकलापों पर अघात सा लगा | पारम्परिक प्रतिष्ठा की रक्षा नहीं हो पाई | अपने शैक्षणिक जीवन में नाना उच्चावच के मध्य यह संस्था अपनी उस खोई प्रतिष्ठा के प्राप्ति हेतु अग्रसर है | महाविघालय परिवार शैक्षणिक सुव्यवस्था प्रदान हेतु समवेत प्रयाशरत रहा है | परिणाम स्वरूप हमारे अनेकों छात्र-छात्राएँसंस्कृतविश्वविघालय दरभंगाद्वारा प्रयोजित प्रतियोगिता में पुरस्कृत होकर संस्था का नाम रौशन किया है |

कामेश्वर सिंहदरभंगासंस्कृत विश्वविघालय के स्वीकृत पाठ्य नियमावली के अनुसार उपशास्त्री वर्ग में संप्रति हमारे यहाँव्याकरण,साहित्य,ज्यौतिष,कर्मकाण्ड,समाजशास्त्र आदि प्राच्य एवं आधुनिक विषयों में पठन-पठान संपादित होता है | इसके लिए सुयोग्यएवं निष्ठावान शिक्षक अपनी सतसेवा दे रहे है |आधुनिक सुविधा से युक्त इसमे एक समृद्ध पुस्तकालय भी है | महाविघालय के सामने एक क्रीड़ा स्थल है | .

आईए अपने भविष्णु बालकों को सुसंस्कारवान, सच्चरित्रवान,सुयोग्य एवं साधुजन बनाने के लिए हमारेमहाविघालय में नामांकन करवाकर इसका लाभ उठावे |

|| भरतस्य प्रतिष्ठे द्वे संस्कृतं संस्कृतिस्तथा ||

प्राचार्य
डा० सतीश चन्द्र झा


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